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निर्जला या भीमसेनी एकादशी 2021: सनातन धर्म में एवं हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष में 24 एकादशी होती है। जब अधिक मास या मलमास आता है, तब 24 एकादशी में दो एकादशी और जुड़ जाती है। इस प्रकार से इस वर्ष कुल 26 एकादशी हो जाती हैं।
एकादशी तिथि एक माह में दो बार आती है। एक कृष्ण पक्ष में और दूसरी शुक्ल पक्ष में। इन सभी एकादशी तिथियों को अलग अलग नाम से जाना जाता है जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी कहते हैं।
सभी एकादशी तिथियों में निर्जला एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस एकादशी व्रत में पानी पीना पूर्णतया वर्जित है। इसी कारणवश इस एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि केवल इस एक एकादशी का व्रत करने से वर्ष भर की सभी 24 एकादशीयों के व्रत का फल मिल जाता है।
कब है निर्जला एकादशी?
निर्जला एकादशी इस वर्ष 21 जून सोमवार को है निर्जला एकादशी की तिथि 20 जून शाम चार बजकर इक्कीस मिनट मिनट से आरंभ होगी और 21 जून को दोपहर 1:31 पर समाप्त होगी। सूर्योदय तिथि के अनुसार एकादशी 21 जून सोमवार को मनाना ही श्रेयस्कर है।
शुभ मुहूर्त तिथि :21 जून 2021 सोमवार
एकादशी तिथि प्रारंभ : 20 जून रविवार 4:21 बजे से
एकादशी तिथि समापन: 21 जून सोमवार दोपहर 1:31 बजे तक
एकादशी व्रत का पारण : 22 जून मंगलवार सुबह 5:13 से 8:01 बजे तक
क्यों कहते हैं निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी?
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास जी ने पांडवों से एकादशी व्रत का संकल्प कराया। तब महाबली भीम ने महर्षि से कहा कि वे तो 1 दिन में एक समय के लिए भी भोजन किए बिना नहीं रह सकते, इसी कारणवश उन्हें एकादशी व्रत के पुण्य फल से भी वंचित रहना होगा।
तब महर्षि वेदव्यास जी ने महाबली भीम की समस्या का समाधान किया और उन्हें वर्ष में केवल एक एकादशी, जेष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करने को कहा।
उन्होंने कहा कि इस एक एकादशी का व्रत करने से वर्ष की समस्त एकादशी ओं के व्रत का पुण्य फल प्राप्त होता है। और मनुष्य पृथ्वी लोक में सुख समृद्धि और यश प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त करता है। इसी कारणवश निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।
निर्जला एकादशी:क्या करें?
विद्वानों के अनुसार एकादशी व्रत करने वाले को गंगा दशहरा के दिन सही तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए। दशमी की रात को भी लहसुन प्याज चावल आदि नहीं खाने चाहिए।
अगले दिन (एकादशी) ब्रह्म मुहूर्त में उठकर श्री हरि का स्मरण करें फिर नित्य कर्म स्नानादि से निवृत्त होकर आचमन कर व्रत का संकल्प ले।
इसी दिन व्रत करने वाले को को पीले कपड़े पहनने चाहिए सूर्यदेव को अर्घ्य देकर व्रत की पूजा आरंभ करें।
उसके पश्चात श्री हरि विष्णु जी को लक्ष्मी जी के साथ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित करें।
उसके पश्चात विष्णु जी को पीले फूल फल अक्षत दूर्वा और चंदन आदि अर्पित करें।
'ओम नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करें।
निर्जला एकादशी व्रत की कथा का श्रद्धा पूर्वक पाठ करके आरती करें।
तुलसी पूजन तथा विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी एकादशी के दिन करना चाहिए।
श्री हरि विष्णु जी की पूजा - आराधना तुलसी पूजन के बिना अधूरी मानी जाती है अतः इस दिन प्रातः काल तुलसी माता को जल देकर नमन करें संध्या समय घी का दीपक जलाएं तथा पूजा करें।
भगवान विष्णु को मिष्ठान का भोग भी लगाना चाहिए भगवान के भोग में तुलसी दल अवश्य शामिल करें।
निर्जला एकादशी के दिन यथासंभव तथा श्रद्धा अनुसार गर्मी से राहत दिलाने वाली वस्तुओं का जरूरतमंद तथा ब्राह्मण को दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी: क्या ना करें?
ध्यान रहे निर्जला एकादशी का व्रत निर्जला रहकर किया जाता है अतः इस व्रत में पानी ग्रहण ना करें
एकादशी व्रत में काम, क्रोध, बुरे विचारों आदि से बचना चाहिए।
एकादशी व्रत में झूठ ना बोलें तथा किसी भी प्रकार का छल कपट, चोरी आदि ना ही करें और ना ही ऐसा विचार मन में लाएं।
निर्जला एकादशी: क्या दान करें?
निर्जला एकादशी के दिन यथाशक्ति तथा श्रद्धा पूर्वक गर्मी से राहत दिलाने वाली वस्तुओं का दान करना शुभ और अत्यंत फलदाई माना जाता है। निर्जला एकादशी पर पानी या शरबत से भरा घड़ा ,हाथ या बिजली का पंखा, छाता, जूते ,वस्त्र आदि का दान करना बेहद अच्छा माना जाता है। इसके अतिरिक्त गर्मी के फल जैसे आम, खरबूजा ,लीची आदि के साथ-साथ चना व गुड़ का दान करना भी अत्यंत शुभकारी है।
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी के दिन स्नान आदि द्वारा शुद्ध होकर करना चाहिए इसमें भगवान विष्णु को मिष्ठान का भोग लगाएं भोग का प्रसाद तथा दक्षिणा श्रद्धा अनुसार ब्राह्मण तथा जरूरतमंदों में वितरित करके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें। व्रत खोलने के बाद ही जल का सेवन करना चाहिए।
क्यों नहीं खाने चाहिए जौ तथा चावल एकादशी के दिन?
पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी के दिन ही माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए ऋषि मेधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया तथा वे जौ तथा चावल के रूप में उत्पन्न हुए।
ऐसी मान्यता है की एकादशी के दिन चावल तथा जौ खाना महर्षि मेधा का मांस तथा रक्त खाने के समान है ऐसा करने वाला व्यक्ति पाप का भागी होता है। इसलिए एकादशी के दिन चावल तथा जो नहीं खाने चाहिए।
एकादशी के दिन सदैव पवित्र तथा सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए तथा हर प्रकार का संयम बरतना चाहिए।
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