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हिंदू धर्म मे एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है प्रत्येक महीने में दो एकादशी होती है --कृष्ण पक्ष एकादशी और शुक्ल पक्ष एकादशी। इस प्रकार प्रति वर्ष में 24 एकादशियाँ आती है। परंतु अधिक मास या मलमास आने पर इन एकादशियों की संख्या दो अतिरिक्त होकर छब्बीस हो जाती है।
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देव शयनी एकादशी के नाम से जाना चाहता है। इस तिथि को 'पद्मनाभा' भी कहते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन से ही चातुर्मास शुरू हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु जी क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाते हैं। भगवान विष्णु इन 4 महीनों में शिव सागर की अनंत शैया पर विश्राम करते हैं। इस चातुर्मास का प्रारंभ एकादशी तिथि से होने के कारण और देवताओं में श्रेष्ठ श्री विष्णु जी के शयन के कारण इस तिथि को देवशयनी एकादशी कहते है।
देवशयनी एकादशी की एक ओर कथा भी प्रसिद्ध है। कि भगवान विष्णु इस दिन से 4 माह के लिए पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करते हैं। ऐसा करते समय वह शयन की स्थिति में चले जाते हैं। इसी कारणवश इस दिन को देव शयनी या हरि शयनी एकादशी कहा जाता है इसे आषाढी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
इस बार 5 माह (148 दिन) का चातुर्मास | 1 जुलाई 2020 से शुरू होकर 25 नवंबर 2020
1 जुलाई 2020 से चातुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे। जिस कारण, 1 जुलाई के बाद 4 महीने के लिए सभी प्रकार के शुभ कार्यों पर विराम लग जाएगा। चातुर्मास के चार माह हैं।
लकिन इस बार अधिकमास यानि मलमास भी है। अतः चार्तुमास अधिक लंबा होगा इसकी अवधि लगभग 5 माह की रहेगी।
इन चातुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य जिसे विवाह, यज्ञोपवीत संस्कार, मुंडन, दीक्षा ग्रहण आदि वर्जित होते हैं। ऐसी मान्यता है कि - भगवान विष्णु जी के शयन करने के कारण भक्तों की मनोकामनाएं पूरी नहीं होती। अतः उपरोक्त धार्मिक कार्य फलीभूत नहीं हो पाते। परंतु गृह प्रवेश, गोदान, नये वाहनों का क्रय विक्रय आदि किए जा सकते हैं।
चातुर्मास का जैन और बौद्ध धर्म में भी अत्याधिक महत्व माना जाता है। ये चार माह पूजा-अर्चना और संयम से जुड़े हुए होते है।
धार्मिक कार्यों के वर्जित होने का यह अर्थ नहीं है, कि आप किसी प्रकार की पूजा-अर्चना नहीं कर सकते। बल्कि इस दौरान आध्यात्मिक शक्ति प्राप्ति के लिए व्रत (उपवास) रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद लाभदायक माना जाता है।
धर्म शास्त्रों के अनुसार भगवान विष्णु को सृष्टि के पालनहार और संचालनकर्ता माना जाता है। परंतु जब भगवान विष्णु इन चातुर्मास में शयन हेतु चले जाते हैं। भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान शिव चार्तुमास में धरती के सभी कार्य देखते हैं तो सृष्टि के संचालन का कार्य भगवान शिव और उनके परिवार पर आ जाता है। इसी कारणवश चातुर्मास में भगवान शिव और उनके परिवार से जुड़े व्रत-त्योहार आदि बनाए जाते हैं। श्रावण मास विशेष तौर पर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। आश्विन माह में देवी दुर्गा की आराधना की जाती है। और शारदीय नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। तदोपरांत कार्तिक मास में देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपने शयन को त्याग कर उठते हैं। है उस तिथि को देवोत्थान एकादशी कहते हैं इस तिथि से पुनः उपरोक्त सभी प्रकार के धार्मिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं इसी कारणवश कार्तिक मास में भगवान विष्णु की पूजा आराधना की जाती है।
देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस तत्व कम हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है। शुभ शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते।
चातुर्मास का वैज्ञानिक महत्व
ऐसा नहीं है कि चातुर्मास का महत्व केवल धर्म शास्त्रों में ही माना गया है। बल्कि यह चार माह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। 4 माह मुख्य रुप से वर्षा ऋतु से जुड़े हुए होते हैं। हवा में नमी की अधिकता होती है सूर्य की रोशनी की कमी होने के साथ-साथ जल की भी अधिकता रहती हैं। जिसके कारण वातावरण में कीड़े मकोड़े कई प्रकार के जीव जंतु और बैक्टीरिया उत्पन्न होते हैं। साथ ही मनुष्य की शारीरिक शक्ति भी क्षीण हो जाती है। इस लिहाज से इन 4 महीनों में हरी पत्तेदार सब्जियां हमारे शरीर के लिए हानिकारक होती हैं। डॉक्टर और चिकित्सक भी संतुलित और हल्का जो आसानी से पच सके भोजन करने की सलाह देते हैं।
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है इस एकादशी के व्रत को करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और सभी पापों का नाश होता हैं उन्हें भगवान विष्णु की असीम अनुकंपा की प्राप्ति भी होती है।
देवशयनी एकादशी पर प्रात काल नित्य कर्म स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु जी नए वस्त्र पहनाएं उनकी पूजा-अर्चना करें।
हरिशयन मंत्र से सुलाएं भगवान विष्णु को
सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।
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