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महाशिवरात्रि अर्थात भगवान शिव को समर्पित एक महा रात्रि। महाशिवरात्रि हिंदुओं के पवित्र त्योहारों में से एक धार्मिक त्योहार है। यह त्यौहार भगवान भोलेनाथ के प्रति विश्वास और आस्था को समर्पित है। यह पर्व फागुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को बड़ी धूमधाम व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है।
शिव पुराण के अनुसार इसी पावन तिथि की रात्रि को भगवान शिव के निराकार स्वरूप के प्रतीक शिवलिंग की पूजा सर्वप्रथम ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने की थी। ऐसा भी माना जाता है कि इसी दिन समुद्र मंथन के दौरान निकले विष को भगवान शिव ने पीकर समस्त ब्रह्मांड की रक्षा की थी। विष को अपने कंठ में धारण करने के कारण भगवान शिव को नीलकंठ के नाम से जाना जाने लगा।
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था। इन सभी मान्यताओं के कारण इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा का विशेष महत्व है।
महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च बृहस्पतिवार
भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ फागुन मास के चतुर्दशी पर रात्रि के समय हुआ था। इस वर्ष 11 मार्च 2021 दिन बृहस्पतिवार को दोपहर 2:40 से चतुर्दशी तिथि प्रारंभ होगी। जोकि 12 मार्च 2021 दिन शुक्रवार को दोपहर 3:03 बजे तक समाप्त हो जाएगी। इसी कारणवश 12 मार्च को उदय कालीन चतुर्दशी होने पर भी महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च बृहस्पतिवार को ही मनाया जाएगा। अतः इसी दिन भोलेनाथ के भक्त गण पूरे श्रद्धा भाव से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा अर्चना करेंगे।
महाशिवरात्रि पर्व के दिन पूजन के साथ-साथ व्रत का भी विशेष महत्व है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार जब माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से पूछा कि ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत है जिससे सभी प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर पाएंगे। इसके उत्तर में भगवान शिव ने पार्वती जी को महाशिवरात्रि के व्रत के विषय में बताया। यह व्रत रखने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को वैसे तो निराहार रहकर व्रत करना चाहिए परंतु यदि ऐसा करना संभव ना हो तो यह व्रत फलाहार के साथ भी किया जा सकता है। परंतु इस व्रत में अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए।
अन्य व्रतों की भांति महाशिवरात्रि का पूजन भी प्रातः काल ही आरंभ किया जाना चाहिए जिसके लिए सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त हो जाना चाहिए उसके बाद किसी भी शिवालय या शिव मंदिर में जाकर सर्वप्रथम प्रथम पूज्य भगवान गणेश जी की पूजा करनी चाहिए।भगवान गणेश की पूजा के पश्चात ही भगवान शिव का जलाभिषेक और दुग्ध अभिषेक करना चाहिए।
त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु शिव में भगवान शिव को सबसे अधिक करुणामई दानी और भोलेनाथ कहा जाता है इसका कारण यह है कि भगवान शिव केवल श्रद्धा पूर्वक पूर्ण आस्था से की गई भक्ति मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं जाता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ पृथ्वी पर विचरण करते हैं भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु मूल मंत्र ओम नमः शिवाय है इस मंत्र का जाप करने से मनुष्य अपने सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त होकर भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करता है इसके अतिरिक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी आपको हर प्रकार के संकट बीमारी और सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है।
|| ओम त्र्यंबकम यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव वंदना मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्। ||
धन प्राप्ति हेतु: बिल्वपत्र
सुख समृद्धि हेतु: सफेद आंकड़े के फूल
प्रेम प्राप्ति हेतु: भगवान शिव और पार्वती जी का संयुक्त पूजन करें और मां पार्वती को श्रृंगार सामग्री भेंट करें।
पुत्र प्राप्ति हेतु: दूध वह हल्दी मिलाकर
सर्व कामना पूर्ति हेतु: पंचामृत-पंचामृत
मेष -गुलाल द्वारा अभिषेक करें।
वृषभ -दूध से अभिषेक करें।
मिथुन- ईख द्वारा अभिषेक करें।
कर्क- पंचामृत से अभिषेक करें।
सिंह- शहद द्वारा अभिषेक करें।
कन्या- केवल शुद्ध जल का प्रयोग अभिषेक करते समय करें।
तुला- दही से अभिषेक करें।
वृश्चिक-दूध और घी दोनों से अभिषेक करें।
धनु-दूध द्वारा अभिषेक करें।
मकर- अनार के रस से अभिषेक करें।
कुंभ-दूध दही शहद घी और शक्कर सभी के साथ अलग-अलग अभिषेक करें।
मीन- किसी भी मौसमी फल से अभिषेक करें जो उसी मौसम का हो।
11th Oct 2024
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Sunil Mehtani is a renowed, Experienced Professioally qualified Vastu Expert & Astrologer. He has gained trust of many satisfied clients due to his expertise in the field of Vastu Shastra & Astrology
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